'' दिल बड़ा मासूम,नादाँ कैसे धड़कने से रोकें ''
सामने रूप का छल-छलाता हो सागर अगर
कैसे मतवाला कोई कदम बहकने से रोके ,
मृगनयन से टपकता हो ग़र मय का गागर
कैसे पीने वाला कोई चाहत मचलने से रोके ,
संग बहारों का पा बहुर जाते बाग़ों के दिन
कैसे भौंरे ,पाँखी ,तितलियाँ चहकने से रोके ,
देख रंगत चमन की तो बागवां का भी दिल
वाग-वाग हो जाता वो कैसे उछलने से रोके ,
प्रकृति भी होती नई नवेली वसन्ती पवन में
प्रकृति भी होती नई नवेली वसन्ती पवन में
कैसे मयूरी पंख आह्लादित फड़कने से रोके ,
बादल भी होता दीवाना देख मस्ती मेघ की
कौन बिजलियों को आस्मां तड़कने से रोके ,
देख मौसम का सुहाना मिज़ाज,मंजर भला
कैसे मस्त घटा चाँदनी को सहकने से रोके ,
देख मौसम का सुहाना मिज़ाज,मंजर भला
कैसे मस्त घटा चाँदनी को सहकने से रोके ,
वो नजरें भी तो हमपे कुछ ऐसे इनायत हुईं
दिल बड़ा मासूम,नादाँ कैसे धड़कने से रोकें ,
जो जिस्म से रूह तक उतरी मोहब्बत बनी
कैसे बेज़ार दिल भी खुद को तड़पने से रोके ,
उनके उखड़ी सांसों की मैंने भी देखी है सूरत
उनके उखड़ी सांसों की मैंने भी देखी है सूरत
कैसे बज़्म से उठ वे खुद को संभलने से रोके ।