दिल की बात शायरी हो गई
[ १ ]
बुझे हुए चराग़ से जैसे
धुवाँ का भभका उठे है
मुद्दत से बसी इस सीने में
इक याद तन दहका उठे है ,
[ २ ]
ज़ख़्मों के निशां मिट जाएं
कब मरहम ही लगाया मैंने
दाग़ बेवफ़ाई के रख छोड़ा है
उनके क़ुरबत को सजाया मैंने,
[ ३ ]
कह गए लौट कर आने की बात
हम दिल का चराग जलाये बैठे हैं
जाने कितनी सच्चाई इस बात में
वो बात हम दिल से लगाये बैठे हैं ।
[ ४ ]
हाँ,डर लगता नहीं मुझे अंधेरों से
मैं कहाँ,कब,कभी अकेली होती हूँ
इक याद के सहारे,ग़म छिपा सीने में
जी भरके तन्हाई,तन्हाई में जी लेती हूँ ।
शैल सिंह
शैल सिंह