एक दीवाना ऐसा भी
हटा दो लाज का पहरा
सबर आँखों का जाता है
मेरी बेचैन चाहत को
अदा नायाब भाता है ,
काली घटा सी जुल्फ़ें
क्या बिजली गिराती हो
मैं मदहोश हुआ जाता
ग़जब चिलमन गिराती हो ,
चुराकर चैन सोतीं तुम
सपन की मीठी बाँहों में
पल भर कटी ना रातें
मगन बोझल निग़ाहों में ,
अगर तुम ला नहीं सकतीं
जुबां पर दिल की वो बातें
निगाहों से वयां कर देतीं
जुबां और दिल की वो बातें ,
तेरे ख़न्जर नयन नशीले
कहीं जान ना मेरी ले लें
सुर्ख लबालब होंठ रसीले
मोहब्बत सरेआम ना पीलें ,
आँखें मदभरी मधुशाला
तिल क़ातिल गाल गुलाबी हैं
अकारथ ही हुआ मतवाला
रंग-ढंग भी चाल नवाबी है ,
पिलाकर मय निगाहों का
ना नजरें यूँ झुकाकर चल
दबाकर दिल की चाहत को
ना दिल को यूँ जलाकर चल ,
तुझे देखूं तो आता चैन
नहीं तो दिल को बेचैनी
क़यामत क्यूँ हो ढाती यूँ
बता दो ना वो मृगनयनी ,
रुसवाई का डर है गर
गर है ख़ौफ़ ज़माने का
तो बेख़ौफ़ ईनायत कर
कर परवाह दीवाने का ,
ख़ुदा की कसम ज़न्नत
तिरे क़दमों में बिछा दूंगा
अगर तूं चाँद मांगे जानम
जमीं पर लाकर दिखा दूंगा ,
क़सीदा तुम ग़ज़ल की हो
सुर,लय ,ताल नग़मों की
इन्तेहा प्यार की गर चाहो
तो ले लो सात जन्मों की ,
कर दीदार जालिम खोल
झरोखा दिल के दरपन का
क्या हालात हैं रोज़ो-शब
दीवाने दिल की धड़कन का ,
कहते लोग परेशां मुझको
कहाँ एहसास खुद का मुझको
हाँ औरों से सुना है जानम
मेरे हालात मालूम तुझको ,
गर तुम पास होते दिलवर
समां का लुत्फ़ लेते छककर
फ़िज़ां भींगी सुहाना मौसम
होता गर बाँहों में लेते भरकर ,
ख़त लिखना नहीं वाज़िब
दिलो-जां में हो तुम रहती
तुझे हर हर्फ़ मालूम ख़त के
नित सांसों में समायी रहती ,
गर पूछेगा सितमगर कोई
पगले तूं बर्बाद हुआ कैसे
तेरी नाजो-अदा ने मारा
कह दूंगा ख़ुदा क़सम से ,
शैल सिंह
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