दिल के लफ़्ज़ शेरों में ढल गए
( 1 )
मैंने तो खतों के चिंदे उड़ा दिए के किसी के हाथ ना लग जाएं
पर एक-एक हर्फ़ दिल के दराज़ में उन्होंने रखा है सहेज कर ,
पर एक-एक हर्फ़ दिल के दराज़ में उन्होंने रखा है सहेज कर ,
अच्छा हुआ जो सपने चुरा लिए उसने वरना टूटकर बिखरते
ख़ुशी देके हूँ फ़ुर्सत में वरना गुंचे ख़्वाब के सूखकर सिसकते ,
बात हमारी हमारे नहीं समझे,दिल के लफ़्ज शेरों में ढल गए
कमाल जो ख़त ना कर सके ग़ज़ल सरे महफ़िल में कह गए ,
कोई ऐसा दिन नहीं कि घटा ना बरसी अश्क़ में नहाये न रोज
हर शक़्ल में बिजली कड़की मासूम दिल को समझाए हैं रोज
मुद्दतों से उधर देखा नहीं आज देखा तो ठूँठ सा खड़ा है शाख़
कभी परिंदों का हरा-भरा संसार था इसपे कैसे खड़ा है उदास ।
( 2 )
पास उन्हें देखकर ज्यों घटा छ गई
आँखों के रस्ते बरसात होने लगी धीरे-धीरे,
लंबे अरसों के बाद ये मुलाकात थी
लब ख़ामोश मगर बात होने लगी धीरे-धीरे ,
तसल्ली से भी जब जी ना भरा
अहसासे दिल अंगड़ाई लेने लगी धीरे-धीरे ,
आँखों के रस्ते बरसात होने लगी धीरे-धीरे,
लंबे अरसों के बाद ये मुलाकात थी
लब ख़ामोश मगर बात होने लगी धीरे-धीरे ,
तसल्ली से भी जब जी ना भरा
अहसासे दिल अंगड़ाई लेने लगी धीरे-धीरे ,
पल में हरे हो गए लम्हे मुरझाये हुए
जज़्बात खुलकर मुखर होने लगी धीरे-धीरे।
जज़्बात खुलकर मुखर होने लगी धीरे-धीरे।
शैल सिंह