उर का गीला गलीचा है अब तलक
बहार बनकर तुम आये चमन में मेरे
ले गये लूट दिल की विरासत मेरी
जिंदगी भर का दर्द देकर उपहार में
मुड़के देखा न कभी कैसी हालत मेरी ।
रूह में इस कदर तुम समाये हुए
भूल जाऊं तुम्हें इतना आसां नहीं
तुम परखते रहे अजनबी की तरह
धड़कनें अब तो इतनी भी नादां नहीं ।
तुम छुपाते रहे कुछ उजागर न हो
मैंने भी तो जतन कुछ किए कम नहीं
पर इक दूजे के अहसासों की खबर
से थे परिचित ये भी तो कुछ कम नहीं ।
था माना मिलन कुछ पलों का सही
चन्द लमहों में धार प्रीत की जो बही
उर का गीला गलीचा है अब तलक
जो नैनों ने नैनों से बातें दिल की कही ।
चाँद आकार लेता जब आकाश में
रजनी होती जब रौशन नहा चाँदनी में
बावरी यादें खोल स्मृतियों के द्वार
गुदगुदा जातीं बांधकर समां चाँदनी में ।
ये गहबर चाँदनी ये सुहानी सी रात
जिनकी यादों का झोंका बहा लाई है
वो तो कब का शहर छोड़कर जा चुके
निगोड़ी फिर क्यूं मुंडेरों पे गहनाई है ।
शैल सिंह