उर्दू ग़ज़ल
ये औरों पे जो उठती हैं ख़्वामख़्वाह उंगलियाँ
आबगीना सामने क्यों नहीं रख लेतीं उंगलियाँ ,
अजीरन बना दे ज़ीस्त ग़र कोई भी खुदर्बी
ख़ैरख़्वाह बने रहना ना कभी बनना खुदर्बी ,
तेरे खुसूसियत के नूर की ये दुनिया हो दीवानी
तुम्हारे दर्क के दरख़्शाँ की हर लब पे कहानी ,
ख़ुशतबा तुम्हारी ख़ुशमिज़ाजी ही पहचान हैं
ख़ुशनूद तुझसे महफ़िलें महफ़िलों की जान है ,
जलाल से तेरे शैल खार खाती है क्यों दुनिया
जमहूर को दिखा शैल जलाली की क्या दुनिया ।
आबगीना--दर्पण , अजीरन ---दूभर,
खुदर्बी --घमंडी , ख़ैरख़्वाह---मित्र ,भला चाहने वाला
खुसूसियत--विशेषता , दर्क ---ज्ञान,
दरख़्शाँ --प्रकाश,चमक , खुशतबा --विनोदी ,मजाकिया
खुशनूद ---संतुष्ट,प्रसन्न , जलाल ---तेज ,प्रताप
जमहूर---अवाम ।
शैल सिंह
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