बुधवार, 22 जुलाई 2015

उर्दू ग़ज़ल

               उर्दू ग़ज़ल


ये औरों पे जो उठती हैं ख़्वामख़्वाह उंगलियाँ
आबगीना सामने क्यों नहीं रख लेतीं उंगलियाँ ,

अजीरन बना दे ज़ीस्त ग़र  कोई भी खुदर्बी
ख़ैरख़्वाह बने रहना ना कभी बनना खुदर्बी ,

तेरे खुसूसियत के नूर की ये दुनिया हो दीवानी
तुम्हारे दर्क के दरख़्शाँ की हर लब पे कहानी ,

ख़ुशतबा  तुम्हारी ख़ुशमिज़ाजी  ही पहचान हैं
ख़ुशनूद तुझसे महफ़िलें महफ़िलों की जान है ,

जलाल से तेरे शैल खार खाती है क्यों दुनिया
जमहूर को दिखा शैल जलाली की क्या दुनिया ।

आबगीना--दर्पण ,   अजीरन ---दूभर,
खुदर्बी --घमंडी ,  ख़ैरख़्वाह---मित्र ,भला चाहने वाला
खुसूसियत--विशेषता ,   दर्क ---ज्ञान,
दरख़्शाँ --प्रकाश,चमक ,  खुशतबा --विनोदी ,मजाकिया
खुशनूद ---संतुष्ट,प्रसन्न ,   जलाल ---तेज ,प्रताप
जमहूर---अवाम ।                                
                                                     शैल सिंह



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