मंगलवार, 21 जुलाई 2015

ग़ज़ल

            ग़ज़ल


गुजर गया जमाना तेरे इंतरज़ार में 
ढल गया शबाब ढल गई उमर 
बिखर गया ख़वाब तेरे इन्तज़ार में ,

सब कुछ लूटा दिया हमने तेरे ऐतबार में
सीने में दम घुटा तबस्सुम की लब पे ताब 
जले खुशफ़हम का दीया तेरे इन्तज़ार में ,

कुछ भी नहीं है पास मेरे अज़ाब के सिवा 
क़हर भी तुम्हारा सोज़े ग़म भी तुम्हारा 
कुछ तो चलो है पास मेरे वफ़ा के सिवा ,

यूँ तो गुजर गई सुबह हर रोज की तरह 
नाउम्मीद कर गई शाम हर रोज की तरह 
दर से गुजर गई हवा हर रोज की तरह , 

जग से छुपाये रखा तुम पर ना आँच आये 
पोंछो ना आँसुओं को कहीं ये भी छल न जाये 
गवारा नहीं कि यादों के ग़फ़लत में रहें साये। 

                                 शैल सिंह     

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