सोमवार, 20 मार्च 2023

ईश्क़ में टूटकर बिखर जाना अगर ईश्क़ है

कैसे भूले गली तुम शहर की मेरे
निशां अब तक जहाँ तेरे पग के पड़े हैं
खुला दरवाजा तकता राह आज तक तेरा
खिड़की पे पर्दे का ओट लिए अब तक खड़े हैं ।

तेरे दीदार को दिल तरसता मेरा
तेरे इन्तज़ार में कैसे दिल तड़पता मेरा
क्या जानो पगले दीवाने दिल का हाल तुम 
कि मेरा होकर भी तेरे लिए दिल धड़कता मेरा ।

ईश्क़ में जख़्म तूने मुझे जो दिया
उसे अंजुमन में मैंने भी आम कर दिया
ईश्क़ में टूटकर बिखर जाना अगर ईश्क़ है
टूटे ख़्वाबों की विरासत भी तेरे नाम कर दिया ।

जाने कैसे रिश्ते में दिल बंध गया
धड़कना भूला पर भूला नहीं नाम तेरा
मिले तो सफर में बहुत लोग मुझको मगर
तड़प,बेचैनी,उलझन में बस तूं तेरी याद चितेरा ।

तोड़कर सरहदें जिद्द की एकबार 
बता जाओ आकर हो ख़फ़ा क्यूँ बेज़ार 
ख़यालों में हुई तेरे बावरी मशहूर हो गई मैं
राह देखते अपलक थककर चूर-चूर हो गई मैं ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह

रविवार, 22 जनवरी 2023

आँखों में ख़वाब तो सजा दे

आँखों में ख़वाब तो सजा दे

ना जाने हुई क्या रैन को मुझसे अदावत
कि नींद मेरी आँखों से कर बैठी बग़ावत ,

अचूक नुस्खे अपनाये नींद लाने के लिए 
मंत्र पढ़े अगणित बार आज़माने के लिए 
ना जाने अटकी कहाँ नींद किस मोड़ पर
गश्त करती फिर रही जाने किस छोर पर ,

ना तो ख़्वाबों में मैंने कोई मन्जर सजाया
न जाने हुई क्यूँ ख़िलाफ़त खंजर चलाया
ले-ले जम्हाई करवट फिरती रही रात भर
नींद तकिया से कुश्ती करती रही रात भर ,

क्यूँ कमबख़्त रूठी दृग से वजह तो बता
बेसबब विवाद कर ना तूं पलक को सता
ना तो किसी सपने लिए नींद गिरवी रखा
ना तो नीलाम की शब देती फिर भी सजा ,

नींद चुराने वाले का प्रतिबिम्ब दिखा तो दे
आँखें कर रही हैं शिकवा कुछ बता तो दे 
नींद ना सही पलकों पर ख़्वाब सजा तो दे
ऐ बेरहम रात ऐसी भी अब ना दगा तो दे ।

शैल सिंह 

शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

बला की बरसात थी

 

  बला की बरसात थी

                                                              
दर्द का लावा जब फूटता ज़ख़्म-ज़िगर से
आंखों से दरिया बन बहता है बरसात सी ,

कभी इस बरसात में तुम भी भींगो अगर
तो जानोगे होती मजा क्या है बरसात की ,

घड़ियाली आंसू जो कहते हैं इस नीर को
एक कतरा तो देखें क्या इसमें बरसात सी ,

घटा के खामोश रौब का तो अन्दाज होगा
प्रलय मचा देता जब फटता है बरसात सी ,

जिस दिन अना मेरी मुझको ललकार देगी
फिर ना कहना कैसी बला की बरसात थी।

ग़ज़ल साज़िशों का तूं ही सैय्यद

साज़िशों का तूं ही सैय्यद


अक़ीदत को मेरी तुमने
इतना जख़म दिया है
दिल लगता नहीं मेरा
ख़ुदा तेरी इबादत में। 

मेरे एहतराम का कटोरा 
रीता किया है तुमने
तोड़ हस्ती का मनोबल
रूस्वा किया है तुमने।
मेरी शफ़्फ़ाफ़ कर्म निष्ठा
को घायल किया है तुमने
किस जुर्म की सज़ा हुई
ख़ुदा तेरी क़यामत में।

ख़िदमत में खोट थी क्या 
क्या आयत में मेरे ख़ामी
थी मुझसे क्या अदावत
क्या तौक़ीर से मेरे हानी
तेरे राजकोष से तो मैंने
कोई निधि नहीं चुराई
हुई हर बार हक़ की हत्या 
ख़ुदा तेरी इज़ाबत में।

तेरा नाम जपते-जपते  
छिल गई मेरी ज़बान
तेरे दर पे सज़दा कर-कर
मस्तक पड़ा निशान
साज़िशों का तूं ही सैय्यद
सुन हाकिम हूँ मैं हैरान
क्या खूब हुई व्यूह रचना
ख़ुदा तेरी सियासत में। 

चंद सिक्कों में बिक गया तूं
ख़ाहिशों का क़त्ल करके
मेरी बर्बादी का जनाज़
देखा बेफिक्र आँख भरके
गर्दिश में मेरी शख़्शियत
तेरी वजह से रहबर
रूठी हूँ मैं ख़फ़ा हूँ
ख़ुदा तेरी शरारत में।

उम्र भर के सारे तप को
धूसरित किया है तुमने
लाऊँ पहले सी कैसे उर्जा
पस्त हौसले किए हैं तुमने
ख़ुदग़र्ज़ तूं भी मालिक
शिकवा करुं भी किससे
झूठी वक़्त जाया की मैं 
ख़ुदा तेरी ज़ियारत में।

अहमक़ हुई मैं साबित
तुझसे आसरा लगा के
रहमोकरम पे ख़त्म तेरे 
इस जनम के सब इरादे 
शेष कितनी ज़िन्दगानी 
अब क्या होगा जाने आगे
कभी इसरार ना करुँगी
ख़ुदा तेरी अदालत में।

सलाहियत ना मेरी देखी
आलमग़ीर जबकि था तूं
रियासत में हुआ ज़ुर्म तेरे
इस रज़ा में जबकि था तूं
ना मुझसा कोई अफ़जल
ना आला सभा में ज़ालिम
हुई कितनी जालसाज़ी 
ख़ुदा तेरी सिफ़ारत में।

अक़ीदत--आस्था,   एहतराम--सम्मान 
शफ़्फ़ाफ़---पारदर्शी,   तौकीर--प्रतिष्ठा,  
इज़ाबत--स्वीकृति मंजूरी,  सैय्यद --सरदार,   
सियासत ---कूटनीति,   रहबर ---मार्गदर्शक,   
इसरार---आग्रह,   ज़ियारत --धर्मस्थल दर्शन,   
अहमक़---मूर्ख,   सलाहियत --योग्यता,पात्रता,   
आलमग़ीर विश्वव्यापी,    अफ़ज़ल --सर्वश्रेठ,   
सिफ़ारत --नुमाइंदगी अध्यक्षता।

                           शैल सिंह

सोमवार, 16 जनवरी 2023

ग़ज़ल '' तस्वीर से लिपट जिसकी जागी रात भर ''

तस्वीर से लिपट जिसकी जागी रात भर


बना के घरौंदा बिखेरा तिनका-तिनका
बताऊँ नाम कैसे  है फ़साने में किनका                        

दिल में दबाए रखा जज़्बातों का तूफ़ां
सुलगता  रहा ज़िगर  उठता  रहा धुवां
दम घुटा तमन्नाओं का खुली नहीं जुबां
हया के शिकंजे में है सैलाबों का कमां ,

ज़ख़्मों का लेके जत्था सिसकी उम्र भर
ऐसा ये मर्ज कोई दवा करती नहीं असर
तस्वीर से लिपट जिसकी जागी रात भर
वह अज़नबी सा गुजरा दरीचे से मेरे दर ,

क्या ख़ता थी मेरी क्या कुसूर बोलो मेरा
जिसे देख शाम ढलती होता नया सवेरा
जादूगरी में  माहिर फ़नकार इक मदारी
दिल ज़िस्म से निकाल के ले गया लुटेरा ,

उल्फ़त में चोट खाई खुलूश भी गंवाया
सूरत की ऐसी बिजली था शमां जलाया
लुटी रुख़सार की सुर्खी तब होश आया
कैसी हुस्न की रवानी गुलों से चोट खाया ,

पूछो राज उदासियों से तन्हाईयों से पूछो
गल रही हूँ मोम सी क्यूँ रानाईयों से पूछो
ये किसका साथ साया परछाईयों से पूछो
कौन यादों में यादों की गहनाइयों से पूछो ,

बेजान और बेदम है ख़ामोशी ऐतबार पर
मौसम ने ली क्यूँ करवट रंज है बहार पर
बेइन्तेहा ख़यालों में ज़ालिम के शुमार पर
दिल आईना सा चटका वादा-ए-क़रार पर ,

भर-भर कर दम वफ़ा का वफ़ादार बनके
ऐसे लुटा दिल मुक़म्मल सौ इक़रार करके
कितने रंग भर मोहब्बत के बेक़रार करके
कैसे मोड़ पे ला छोड़ा तनहा बीमार करके ।

                                                     शैल सिंह 

शुक्रवार, 3 जून 2022

'' ऐ हमनफ़स हमराही मेरे हमसफ़र ''

ऐ हमराही,हमनफ़स मेरे हमसफ़र 


फिर न जाने क्यों दिल आज बेचैन है
दो लाईन ग़ज़ल की ज़रा सुना दीजिए ,

ये गुंचे सितारे सिरफिरी ये मौज़े-हवा
दबी ख़्वाहिशों की सांकल दी हैं बजा
उम्र गुजरी मगर अधर नाम तेरा सजा ,

दफ़अतन छीन लिए आके शबे-चैन हैं
कोई नग़मा,नज़्म ज़रा गुनगुना दीजिए ,

दबाये रखा था आंधी जो करके जतन
बिजली अना की गिरा दे दगा ये पवन
आज़ दहका गयी फिर दिल की अगन ,

बे-कमां मारे दिल  पर फिर क्यों वैन हैं
छिन्न बीन के तार ज़रा झनझना दीजिए

तेरा शहर छोड़ी थी बस यादों के सिवा
ज़ख़्म दिल के ढूँढ़ने फिर क्यूँ आई हवा
हर घाव था भर दिया वक़्त ने बन दवा ,

माज़ी से कर गई फिर मुज़तरिब रैन है
यास की गली में ज़रा गुंचे बिछा दीजिये

दफ़अतन--अचानक , अना--अस्तित्व
वैन--बाण , बे-कमां--बिना धनुष के 
माज़ी--अतीत , मुज़तरिब--विचलित, 
यास—-मायूसी

                                   शैल सिंह 

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

आँखों की करामात पर ग़ज़ल


     आँखों की करामात पर ग़ज़ल


आँखों को मैंने अपनी घटा बना लिया है
उमड़ कहीं न कह दें दिल का राज सारा
इसलिए रख अधरों पे मुस्कान की डली
भींगती रोज भीतर देख अन्दाज़ तुम्हारा ,

निग़ाहों के लफ़्ज़ों से कशमकश में हूँ मैं
फंसी कैसी दुबिधाओं के कफ़स में हूँ मैं
तुम कैसे बाज़ीगर हारा एहतियात सारा
तिलस्मी बड़ा दीद का अल्फ़ाज़ तुम्हारा ,

धड़कनों की सरहद पार आ थे जब गये
निग़ाहों के समंदर उतर नहा थे जब गये
तो कह जाते दिल का भी जज़्बात सारा
बेज़ार करता है नि:शब्द सौगात तुम्हारा ,

ऐसे गुमनाम हुये तुम दे प्रीत की तावीज़ 
क़त्ल किये सुकूं का औ बने भी अज़ीज़ 
निग़ाहों में रख चलते तुम हथियार सारा 
ख़ंजर से तेज किया है मौन वार तुम्हारा ,

तेरे नैन जो किये थे नादाँ दिल से सुलूक 
खिल गये थे गुल प्यार के उद्गार हैं सुबूत 
कर दिया है बयां लिखकर हालात सारा
शायद हो कभी मुझसे मुलाक़ात तुम्हारा ।

कफ़स--- पिंजरा
सर्वाधिकार सुरक्षित 
              शैल सिंह