आँखों में ख़वाब तो सजा दे
ना जाने हुई क्या रैन को मुझसे अदावत
कि नींद मेरी आँखों से कर बैठी बग़ावत ,
अचूक नुस्खे अपनाये नींद लाने के लिए
मंत्र पढ़े अगणित बार आज़माने के लिए
ना जाने अटकी कहाँ नींद किस मोड़ पर
गश्त करती फिर रही जाने किस छोर पर ,
ना तो ख़्वाबों में मैंने कोई मन्जर सजाया
न जाने हुई क्यूँ ख़िलाफ़त खंजर चलाया
ले-ले जम्हाई करवट फिरती रही रात भर
नींद तकिया से कुश्ती करती रही रात भर ,
क्यूँ कमबख़्त रूठी दृग से वजह तो बता
बेसबब विवाद कर ना तूं पलक को सता
ना तो किसी सपने लिए नींद गिरवी रखा
ना तो नीलाम की शब देती फिर भी सजा ,
नींद चुराने वाले का प्रतिबिम्ब दिखा तो दे
आँखें कर रही हैं शिकवा कुछ बता तो दे
नींद ना सही पलकों पर ख़्वाब सजा तो दे
ऐ बेरहम रात ऐसी भी अब ना दगा तो दे ।
शैल सिंह
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