बला की बरसात थी
दर्द का लावा जब फूटता ज़ख़्म-ज़िगर से
आंखों से दरिया बन बहता है बरसात सी ,
आंखों से दरिया बन बहता है बरसात सी ,
कभी इस बरसात में तुम भी भींगो अगर
तो जानोगे होती मजा क्या है बरसात की ,
तो जानोगे होती मजा क्या है बरसात की ,
घड़ियाली आंसू जो कहते हैं इस नीर को
एक कतरा तो देखें क्या इसमें बरसात सी ,
एक कतरा तो देखें क्या इसमें बरसात सी ,
घटा के खामोश रौब का तो अन्दाज होगा
प्रलय मचा देता जब फटता है बरसात सी ,
प्रलय मचा देता जब फटता है बरसात सी ,
जिस दिन अना मेरी मुझको ललकार देगी
फिर ना कहना कैसी बला की बरसात थी।
फिर ना कहना कैसी बला की बरसात थी।
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