शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

बला की बरसात थी

 

  बला की बरसात थी

                                                              
दर्द का लावा जब फूटता ज़ख़्म-ज़िगर से
आंखों से दरिया बन बहता है बरसात सी ,

कभी इस बरसात में तुम भी भींगो अगर
तो जानोगे होती मजा क्या है बरसात की ,

घड़ियाली आंसू जो कहते हैं इस नीर को
एक कतरा तो देखें क्या इसमें बरसात सी ,

घटा के खामोश रौब का तो अन्दाज होगा
प्रलय मचा देता जब फटता है बरसात सी ,

जिस दिन अना मेरी मुझको ललकार देगी
फिर ना कहना कैसी बला की बरसात थी।

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