बुधवार, 17 नवंबर 2021

गजल -- हर लम्हा गुजारा जैसे तेरे एहसास में

हर लम्हा गुजारा जैसे तेरे एहसास में 

दुधिया  आँचल  फैलाए  जवां रात है
रेशमी स्मृतियों की निर्झर बरसात है
खोल घूंघट घटा की चाँदनी चुलबुली
सजाई टिमटिम सितारों की बारात है ।

ख़ाब रूपहला सजाए  हुए पलकें मूंद
सपनों की आकाशगंगा में तिरती रही
गदराई चाँदनी छिटक कर अंगना मेरे
मृदुल स्पन्दन सुप्त प्राणों में भरती रही ।

मद्धिम हो जायेगी चाँदनी की उजास
आलम ये खो जायेगा भोर की गर्द में
रंग बिखर जायेगा हुस्न और ईश्क़ का
कब तक सूरत संवारती रहूँ आइने में ।

तेरे सहन में भी हो ऐसी दिलकश रात
मची हलचल  ख़यालों की  बस्ती में हो
हर लमहा गुजारा जैसे तेरे इन्तज़ार में
तेरी भी यामा  जग आँखों में कटती हो  ।

लफ्ज़ गूंगा तराशूं किन उपकरणों से
कि बयां कर सकें बेचैनियां ऐ बेवफ़ा 
बड़े ही तहज़ीब से यादें पहलू में बैठ
दर्द देतीं ज़ख़्म-ए-ज़िगर को बेइंतहा ।

उर में कोलाहल सन्नाटा फैली फ़िज़ा
खुशी कुहराम मचा बैठी हड़ताल पर
बेसबब इन्तज़ार का शामियाना लगा
रचातीं अश्रुओं से हैं स्वयंवर रात भर ।

आखिर कबतक नज़रबंद दिल में रहें
रतनारी आँखों में घटा बनी घिरतीं रहें।
छुपाये रखा जिसे दश्त की निग़ाहों से
शोर बरपा गयीं उमड़ बरसी आँखों से ।

सर्वाधिकार सुरक्षित
                   शैल सिंह

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