गुरुवार, 25 नवंबर 2021

घड़ी भर लिए खुश्बू हुई जो जज़्ब सांसों में

घड़ी भर लिए ख़ुश्बू हुई जो जज़्ब सांसों में 


बस आँखें हुईं थीं चार इतनी सी मुलाक़ात 
चन्द लम्हों में हुई जाने क्या ऐसी करामात 
अंतर को नहीं भाया दूजा फिर नया चेहरा
नशा बन के वो पल है आँखों में आत्मसात ।

दिल की पनाहों में महफ़ूज़ सुरमई वो शाम 
यादों की तिजोरी खोलूं हो बेमौसम बरसात 
घड़ी भर लिए खुश्बू  हुई जो जज़्ब सांसों में
वह एहसास संजो रखे हैं अबतक ख़यालात ।

यादों में,ख़्वाबों  में कभी आ बैठें पलकों पर
जुगनुओं सा जगमगा कर जाते हैं ख़ुराफ़ात 
दिखा नया मंज़र फिर मेरी भोली आँखों को
मनाकर जश्न रातों में चले जाते मचा उत्पात ।

है याद अभी वो ठौर पी जहाँ नज़र का जाम
ख़्यालों में अवारा घूमता ठहरा हुआ लम्हात 
डर जाती खिड़की से गुजरता कोई अजनवी 
चुरा ले न मोती नैनों के वो दे नैनों की सौगात ।

कभी लरजे हँसी लब पे कभी आँखों में आँसू
कहे मतिभ्रष्ट मुझे जग या वाहियात गवारा है 
जब भी निहारूं चेहरा नहीं बर्दाश्त दर्पण को
अक़्स नजरों में तेरी जो मैंने साक्षात उतारा है ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
                   शैल सिंह

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