घड़ी भर लिए ख़ुश्बू हुई जो जज़्ब सांसों में
चन्द लम्हों में हुई जाने क्या ऐसी करामात
अंतर को नहीं भाया दूजा फिर नया चेहरा
नशा बन के वो पल है आँखों में आत्मसात ।
दिल की पनाहों में महफ़ूज़ सुरमई वो शाम
यादों की तिजोरी खोलूं हो बेमौसम बरसात
घड़ी भर लिए खुश्बू हुई जो जज़्ब सांसों में
वह एहसास संजो रखे हैं अबतक ख़यालात ।
जुगनुओं सा जगमगा कर जाते हैं ख़ुराफ़ात
दिखा नया मंज़र फिर मेरी भोली आँखों को
ख़्यालों में अवारा घूमता ठहरा हुआ लम्हात
डर जाती खिड़की से गुजरता कोई अजनवी
कभी लरजे हँसी लब पे कभी आँखों में आँसू
कहे मतिभ्रष्ट मुझे जग या वाहियात गवारा है
जब भी निहारूं चेहरा नहीं बर्दाश्त दर्पण को
अक़्स नजरों में तेरी जो मैंने साक्षात उतारा है ।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
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