कुछ शायरी
जब ग़म मुश्किल हो जाए सीने में ज़ज़्ब करना
भींगो लेना अश्कों की कलम से पन्नों का सीना
ये सिसकियां भी इक दिन बन जाएंगी फसाना
ग़म जाहिर कर जमाने को कभी मौका ना देना,
दर्द हर्फ़ों के लिबास में जब्त पन्नों पर कर लेना
नींद की आगोश में करवटें बेफिक्र हो भर लेना ।
कभी ख़ुशग़वार हो बहारें गुजरती थीं बगल से
आज अहदे-खिजां दे गुजर गईं यूँ सर्र से बगल से
मासूम यादें खूब रोईं लिपट कर ख़्यालों की गुदड़ी से
जैसे लड़खड़ा कर बिखर जाते मायूस हो पत्ते दरख़्त से
वैसे तो बहुत सारे दस्तावेज पास तन्हाई बहलाने के मग़र
यादें ज़ेहन के दीवारों दर खड़ीं खण्डहर सी माज़ी की मग़र।
तेरी भेंट की हर चीज को जीने का संबल बना लिया है
रेशमी यादों का रेशा-रेशा,लपेट कर कंबल बना लिया है
रेशमी यादों का रेशा-रेशा,लपेट कर कंबल बना लिया है
आँखों में तेरी तस्वीर बसा ज़िन्दगी को संदल बना लिया है
तेरे ख़्यालों में सुलगते रहना ज़िन्दगी को जंगल बना लिया है
जख़्म,वफ़ा,बेवफ़ाई शुमार कर जीस्त को दंगल बना लिया है
जख़्म,वफ़ा,बेवफ़ाई शुमार कर जीस्त को दंगल बना लिया है
गुजरे लम्हों की परछाईयाँ,लिखे ख़तों को भूमंडल बना लिया है।
मेरे शब्दों को ग़ज़लों की,इबारत भर मत समझ लेना
मेरे रूह की भींगी अल्फ़ाज़ों,की झनकार हैं ये ग़ज़लें
ज़िन्दगी जिन हर्फ़ों के सुर,सप्तक लब पे न सजा पाई
उसे पन्नों पे लिखे ताकि रूह को झकझोर दें ये ग़ज़लें।
कितना करूँ ऐतबार ये इन्तज़ारी मार डालेगी
दिल का छीन गया क़रार बेक़रारी मार डालेगी
नज़र से नज़र मिली बस ज़रा सी क्या सफर मेें
के इश्क़ में हुए ये कारोबार बेज़ारी मार डालेगी ।
दिल का छीन गया क़रार बेक़रारी मार डालेगी
नज़र से नज़र मिली बस ज़रा सी क्या सफर मेें
के इश्क़ में हुए ये कारोबार बेज़ारी मार डालेगी ।
बड़ी ताब लेकर निकलता है सूरज
गोधूलि में मायूस होकर मग़र डूबता है
गुमां क़ामयाबी का अच्छा नहीं होता दोस्त
शीशे के मानिंद गरूर इक दिन मग़र टूटता है ,
गोधूलि में मायूस होकर मग़र डूबता है
गुमां क़ामयाबी का अच्छा नहीं होता दोस्त
शीशे के मानिंद गरूर इक दिन मग़र टूटता है ,
लोगों के लहज़े,अंदाज़ बता दिया करते हैं दिल में छुपे राज
चाहे जितनी मशक्क़त करले चेहरा,जुबाँ भाव छुपा लेने की।
चाहे जितनी मशक्क़त करले चेहरा,जुबाँ भाव छुपा लेने की।
ऐसी आड़ी तिरछी मुश्किलातें जिंदगी में,मेहनत रंग नहीं लाती
भगवन इतनी अच्छी नींद दे देना कि सपने देख मगन तो हो लूँ ।
ईश्वर ने मुकद्दर तो बहुत उम्दा,अच्छा लिखा था
ईश्वर ने मुकद्दर तो बहुत उम्दा,अच्छा लिखा था
मग़र बदइंसानों ने कीं हर बार साथ नाइंसाफियाँ ।
हम इतने बेख़याल हो गए कि गर्द चढ़ गई रिश्तों पर
जब पुराने रौ में लौटी तो लोग पहचानने से मुकर गए।
पंख उड़ानों को लगाती भी तो भला कैसे
हौसले औरों के आधीन औ पाबन्द जो थे।
बसाया था जिन आँखों में मुझे आँखों की पुतली बनाकर
उन्ही आँखों में किसी ने डाल लिया है डेरा बसेरा बनाकर ,
धैर्य का दामन थामे मुश्क़िलाते आसां कीजिये
ज़िन्दगी है एक इम्तिहान,इम्तिहान देते जाईये ,
ऐ चाँद उतर आना चुपके से
इक रात मेरे भी दरीचे में
ख़ाहिशों के जुगनू जगमगा कर
छुप जाना बादल के कूचे में ,
कुछ अहसासों के ख़ुश्बू पास कुछ यादों के जुग़नू पास
कुछ बचपन के गुजरे लम्हों की ,भूली बिसरी यादें साथ
जीवन के इस विस्तार में बस,कुछ यादों का है बसा संसार
जीवन के इस विस्तार में बस,कुछ यादों का है बसा संसार
जब-जब पूरवा बहे अतीत की तब-तब यादों की पड़े फुहार
पलकों का आँगन नम कर जातीं कितने शक़्लों की परछाई
विचरित करने लगतीं जेहन में,जब बाँहों में भर-भर तन्हाई ।
विचरित करने लगतीं जेहन में,जब बाँहों में भर-भर तन्हाई ।
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