इस तरह टूट कर चाहा तुझे क्यूँ ऐ बेवफ़ा ज़िन्दगी
हो रहा जर्जर वदन कुम्हला रहीं गात की कांतियां
पैरूख थका हक,अधिकार गया रह गईं विरानियाँ ।
शैल सिंह
मैं शायरकर नहीं पर शायरी किसी की विेरासत नहीं ,मैं ग़ज़लकार नहीं पर ऐसा नहीं कि उर्दू के हर्फ़ मेरे धड़कनों में धड़कतते नहीं। मेरे लेखनी की ख़ुश्बू हर दिल अजीज को भाएगी । उर्दू की तहजीब और उर्दू की अदब हमेशा से ही रिझाती रही हैं हिंदी की तरह । मेरे धडकनो और अहसासों का बेहतरीन गुच्छा जो लाजवाब और नायाब है ,मेरी काव्य विधा का शायरी और ग़ज़ल भी एक अंग है ,शायद इसके बिना लेखनी ,लेखक ,कवि की पूर्णता नहीं मेरी लेखनी के एक और रूप की वानगी ....|
दिल की पनाहों में महफ़ूज़ सुरमई वो शाम
यादों की तिजोरी खोलूं हो बेमौसम बरसात
घड़ी भर लिए खुश्बू हुई जो जज़्ब सांसों में
वह एहसास संजो रखे हैं अबतक ख़यालात ।
कभी लरजे हँसी लब पे कभी आँखों में आँसू
कहे मतिभ्रष्ट मुझे जग या वाहियात गवारा है
जब भी निहारूं चेहरा नहीं बर्दाश्त दर्पण को
अक़्स नजरों में तेरी जो मैंने साक्षात उतारा है ।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
दुधिया आँचल फैलाए जवां रात है
रेशमी स्मृतियों की निर्झर बरसात है
खोल घूंघट घटा की चाँदनी चुलबुली
सजाई टिमटिम सितारों की बारात है ।
ख़ाब रूपहला सजाए हुए पलकें मूंद
सपनों की आकाशगंगा में तिरती रही
गदराई चाँदनी छिटक कर अंगना मेरे
मृदुल स्पन्दन सुप्त प्राणों में भरती रही ।
तेरे सहन में भी हो ऐसी दिलकश रात
मची हलचल ख़यालों की बस्ती में हो
हर लमहा गुजारा जैसे तेरे इन्तज़ार में
तेरी भी यामा जग आँखों में कटती हो ।
उर में कोलाहल सन्नाटा फैली फ़िज़ा
खुशी कुहराम मचा बैठी हड़ताल पर
बेसबब इन्तज़ार का शामियाना लगा
रचातीं अश्रुओं से हैं स्वयंवर रात भर ।
आखिर कबतक नज़रबंद दिल में रहें
रतनारी आँखों में घटा बनी घिरतीं रहें।
छुपाये रखा जिसे दश्त की निग़ाहों से
शोर बरपा गयीं उमड़ बरसी आँखों से ।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह