शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

ग़ज़ल गुनहगार हूँ मगर बेकसूर भी हूँ

गुनहगार हूँ मगर बेकसूर भी हूँ


ज़माने की निग़ाहों का तीर सह सकी ना
मजबूर इस कदर हुई कर बैठी बेवफ़ाई

कभी आह भरती हूँ  कभी रोती बहुत हूँ
दर्द रात भर पिघलता  जाने कैसी बुत हूँ
अश्क़ गम के खातों में कसकती तन्हाई
मजबूर इस कदर हुई कर बैठी बेवफ़ाई

कभी फूल बन के तुम आते हो ख़्वाबों में
कभी पलकों पर आ  बह जाते सैलाबों में
क्यूँ गुजरे ज़माने की महका जाते पुरवाई
मजबूर इस कदर हुई  कर बैठी बेवफ़ाई ,

अपनी ज़िन्दगी अपनी किस्मत ना बस में
भला कैसे निभाते हम वफ़ादारी की रस्में
जिधर फेरती निग़ाह दिखती तेरी परछाई
मजबूर इस कदर  हुई कर बैठी बेवफ़ाई ,

तिल-तिल कर मरती हूँ दिल की तड़प से
यह शमां जलती देखो ज़िस्म की दहक से
क़समें वादों का जनाज़ा क्या गाये रूबाई
मजबूर इस कदर  हुई कर बैठी बेवफ़ाई

बेग़ैरत मोहब्बत ना मेरे हमदम समझना
ख़ुदा की कसम मुझको बेवफ़ा न कहना
बेपनाह मोहब्बत  की तुम्हें दे रही  दुहाई
मजबूर इस कदर  हुई कर बैठी बेवफ़ाई ,

तोहमत की बिजली न बेचारगी पे गिराना
जब भी दूँ सदा सुन फ़रिश्ता बनके आना
टूटा दिल का आबगीना फिर भरने रौनाई
मजबूर इस कदर  हुई कर  बैठी बेवफ़ाई

आबगीना --शीशा

                           शैल सिंह 

रविवार, 3 जुलाई 2016

एक दीवाना ऐसा भी

एक दीवाना ऐसा भी 

हटा दो लाज का पहरा 
   सबर आँखों का जाता है 
      मेरी बेचैन चाहत को 
         अदा नायाब भाता है ,

काली घटा सी जुल्फ़ें 
   क्या बिजली गिराती हो 
       मैं मदहोश हुआ जाता 
          ग़जब चिलमन गिराती हो ,

चुराकर चैन सोतीं तुम 
    सपन की मीठी बाँहों में 
       पल भर कटी ना रातें 
           मगन बोझल निग़ाहों में ,

अगर तुम ला नहीं सकतीं 
    जुबां पर दिल की वो बातें 
         निगाहों से वयां कर देतीं 
            जुबां और दिल की वो बातें ,

तेरे ख़न्जर नयन नशीले 
   कहीं जान ना मेरी ले लें 
       सुर्ख लबालब होंठ रसीले 
           मोहब्बत सरेआम ना पीलें ,

आँखें मदभरी मधुशाला 
   तिल क़ातिल गाल गुलाबी हैं 
       अकारथ ही हुआ मतवाला 
             रंग-ढंग भी चाल नवाबी है ,

पिलाकर मय निगाहों का 
   ना नजरें यूँ झुकाकर चल 
        दबाकर दिल की चाहत को 
            ना दिल को यूँ जलाकर चल ,

तुझे देखूं तो आता चैन 
    नहीं तो दिल को बेचैनी 
        क़यामत क्यूँ हो ढाती यूँ 
            बता दो ना वो मृगनयनी ,

रुसवाई का डर है गर 
    गर है ख़ौफ़ ज़माने का 
        तो बेख़ौफ़ ईनायत कर 
            कर परवाह दीवाने का ,

ख़ुदा की कसम ज़न्नत 
    तिरे क़दमों में बिछा दूंगा
         अगर तूं चाँद मांगे जानम 
             जमीं पर लाकर दिखा दूंगा ,

क़सीदा तुम ग़ज़ल की हो 
   सुर,लय ,ताल नग़मों की 
        इन्तेहा प्यार की गर चाहो 
            तो ले लो सात जन्मों की ,

कर दीदार जालिम खोल 
    झरोखा दिल के दरपन का 
        क्या हालात हैं रोज़ो-शब 
            दीवाने दिल की धड़कन का ,

कहते लोग परेशां मुझको 
    कहाँ एहसास खुद का मुझको 
       हाँ औरों से सुना है जानम 
            मेरे हालात मालूम तुझको ,

 गर तुम पास होते दिलवर 
     समां का लुत्फ़ लेते छककर 
         फ़िज़ां भींगी सुहाना मौसम 
            होता गर बाँहों में लेते भरकर ,

ख़त लिखना नहीं वाज़िब 
   दिलो-जां में हो तुम रहती 
      तुझे हर हर्फ़ मालूम ख़त के 
          नित सांसों में समायी रहती ,

गर पूछेगा सितमगर कोई 
    पगले तूं बर्बाद हुआ कैसे 
         तेरी नाजो-अदा ने मारा 
             कह दूंगा ख़ुदा क़सम से ,

                              शैल सिंह