गुरुवार, 1 अगस्त 2019

" बिठा सपनों के हिंडोले पर चले जाते हो "

 बिठा सपनों के हिंडोले पर चले जाते हो

आँखें कहती हों कुछ देखते जिस तरह
छोड़ कर अबूझ कौतुहल चले जाते हो
जिज्ञासाओं के चमन खिला प्रेम पंखुरी
दीप मन के बसेरे में जला चले जाते हो ।

हृदय में भी उतर जरा झाँक जाया करो
लगाकर हसरतों का मेला चले जाते हो
कल्पनायें नासमझ उड़तीं बिन पंखों के
रिझा रास अलौकिक रचा चले जाते हो ।

क्यों कनखियों से देखते जताते बेरूखी
भरम का पिला गरल नशा चले जाते हो
क्यों भोर की किरण सांध्य बन चाँद का
छीन करार कुछ कहे बिना चले जाते हो ।

रूप निरखते सदा मन की टोह लेते नहीं
बिठा सपनों के हिंडोले पर चले जाते हो
मदोन्मत्त हो किये कुछ लिहाज भी करो
निर्दोष हसरतें संजीदा कर चले जाते हो ।

अल्फाज़ बोलो कुछ ताले खोल अधर के
झिझक की गली में सैर कर चले जाते हो
उल्लास के बहाव में बहा कश्ती मौन की
स्थिर मौजों को छेड़ दगा दे चले जाते हो ।

छोड़ो बुज़दिली मधुर शब्द घोलो कर्ण में
भाव मन के भाँप आघात दे चले जाते हो
ग़र अनमोल अवसर गंवा दिये संकोचों में 
बिखर जायेगा ये ताना-बाना चले जाते हो ।

सर्वाधिकार सुरक्षित
                      शैल सिंह