गज़ल
ख़ामोशियों से धो दिया
हसरतों के दाग को ,
दर्द की हर आह को
सजल हुए जब नैन कभी
बदल दिया मिज़ाज को ,
मनहूसियत,चिंता,हताशा
औ घेरे हुए अज़ाब को
पिला ख़ुशी की घुट्टियाँ
रंगीन कर लिया अंदाज़ को ,
क्या-क्या न गुजरी ज़िंदगी में
ग्रहण लगे जब ख़्वाब को
कर लिया तम को हरने वास्ते
रौशन दिल-ए-आफ़ताब को ,
जब ग़म पहाड़ बन गए
हर वेदना की आग को
रख दिया जगत के सामने
खोल अंतर्द्वंद के किताब को ,
सत्कर्म,निष्ठा ईमान,श्रम की
सजा मिलती है क्यों बेदाग को
व्यर्थ संघर्ष होते,पस्त हौसले
मौन पीये अन्याय के तेज़ाब को ,
जो समझे खुद को तीसमारखाँ
कोई बता दे उस ज़नाब को
सामने रख के इक आईना
उतार लेगा फिर नक़ाब को ,
परख चल आएंगी खुद मन्ज़िलें
उठेंगे हज़ारों हाथ आदाब को
ना टूटो ना तुम बिखरो शैल
पंख लगेंगे नैनों में बसे ख़्वाब को |
शैल सिंह
जब ग़म पहाड़ बन गए
हर वेदना की आग को
रख दिया जगत के सामने
खोल अंतर्द्वंद के किताब को ,
सत्कर्म,निष्ठा ईमान,श्रम की
सजा मिलती है क्यों बेदाग को
व्यर्थ संघर्ष होते,पस्त हौसले
मौन पीये अन्याय के तेज़ाब को ,
जो समझे खुद को तीसमारखाँ
कोई बता दे उस ज़नाब को
सामने रख के इक आईना
उतार लेगा फिर नक़ाब को ,
परख चल आएंगी खुद मन्ज़िलें
उठेंगे हज़ारों हाथ आदाब को
ना टूटो ना तुम बिखरो शैल
पंख लगेंगे नैनों में बसे ख़्वाब को |
शैल सिंह