शुक्रवार, 3 जून 2022

'' ऐ हमनफ़स हमराही मेरे हमसफ़र ''

ऐ हमराही,हमनफ़स मेरे हमसफ़र 


फिर न जाने क्यों दिल आज बेचैन है
दो लाईन ग़ज़ल की ज़रा सुना दीजिए ,

ये गुंचे सितारे सिरफिरी ये मौज़े-हवा
दबी ख़्वाहिशों की सांकल दी हैं बजा
उम्र गुजरी मगर अधर नाम तेरा सजा ,

दफ़अतन छीन लिए आके शबे-चैन हैं
कोई नग़मा,नज़्म ज़रा गुनगुना दीजिए ,

दबाये रखा था आंधी जो करके जतन
बिजली अना की गिरा दे दगा ये पवन
आज़ दहका गयी फिर दिल की अगन ,

बे-कमां मारे दिल  पर फिर क्यों वैन हैं
छिन्न बीन के तार ज़रा झनझना दीजिए

तेरा शहर छोड़ी थी बस यादों के सिवा
ज़ख़्म दिल के ढूँढ़ने फिर क्यूँ आई हवा
हर घाव था भर दिया वक़्त ने बन दवा ,

माज़ी से कर गई फिर मुज़तरिब रैन है
यास की गली में ज़रा गुंचे बिछा दीजिये

दफ़अतन--अचानक , अना--अस्तित्व
वैन--बाण , बे-कमां--बिना धनुष के 
माज़ी--अतीत , मुज़तरिब--विचलित, 
यास—-मायूसी

                                   शैल सिंह