सोमवार, 29 नवंबर 2021

" इस तरह टूट कर चाहा तुझे क्यूँ ऐ बेवफ़ा ज़िन्दगी "

इस तरह टूट कर चाहा तुझे क्यूँ ऐ बेवफ़ा ज़िन्दगी 


रफ़्ता-रफ़्ता घिस रहीं ज़िन्दगी की पुष्ट बैसाखियां
हौले-हौले काया ढले शनैः शनैः हुस्न की रानाईयां 
रूख़सार की लाली पे खींची आड़ी-तिरछी झुर्रियाँ
हिक़ारत से देखता आईना पड़ी शक्ल पर झाईयाँ ।

हस्ती मिटी बल गया बढ़ रहीं दबे पांव परेशानियां
रूतबा गया तेवर भी गया शिथिल हो रहीं इन्द्रियां
हो रहा जर्जर वदन कुम्हला रहीं गात की कांतियां
पैरूख थका हक,अधिकार गया रह गईं विरानियाँ ।

अखरे उम्र का वेग बढ़ता,बढ़ती जा रहीं तन्हाईयां
उड़ गये पंछी सेहन के थीं कभी गुलज़ार टहनियाँ
वैसे तो सफर मे बेशुमार चलते स्मृति के काफिले 
पर गूँजतीं नहीं कर्णों में मकरन्द सी किलकारियाँ ।

जीवन की लरजती छांव में बेकाम की निशानियाँ
रह गईं गुजरे लम्हातों  की कुछ धुंधली परछाईयाँ 
भटक रही माज़ी के गांव में हटा के दर्द का मल्बा
डूबता सूर्य ढलती सांझ,शेष निशा की ख़ामोशियां ।

लगे शुष्क सा आस्मान,बदलीं फ़िज़ा की झांकियाँ  
वक़्त बहता नामुराद बहें जैसे निकाल राह नदियां
मरूथल को सरोकार क्या ऋतुराज के आग़ाज़ से 
कहाँ मिटा पाई वर्षा मरूभूमि की फटी बिवाईयाँ ।

लचक रहीं शाखें देह की निढाल होतीं अंगड़ाईयाँ
स्फूर्ति पांव की गई जो थिरका कीं सुन शहनाईयाँ
इस तरह टूटकर चाहा तुझे क्यूँ ऐ बेवफ़ा ज़िन्दगी
किश्तों-किश्तों में कुतर गई सपनों की सुघराईयां । 

खा गई शैशव की शबनमी अल्हड़ भरी नादानियाँ
गदराये यौवन की लीली सुनहरी रेशमी दोपहरियाँ
कुछ पल सहेज रखा उर के बियाबान सायबान में
उम्र के अवसान में संग निभा रहीं ग़ज़ल,रूबाईयाँ ।

माज़ी—-अतीत,  बियाबान—वीरान,  
सायबान—-छाजन या छाया

  सर्वाधिकार सुरक्षित
                        शैल सिंह

गुरुवार, 25 नवंबर 2021

घड़ी भर लिए खुश्बू हुई जो जज़्ब सांसों में

घड़ी भर लिए ख़ुश्बू हुई जो जज़्ब सांसों में 


बस आँखें हुईं थीं चार इतनी सी मुलाक़ात 
चन्द लम्हों में हुई जाने क्या ऐसी करामात 
अंतर को नहीं भाया दूजा फिर नया चेहरा
नशा बन के वो पल है आँखों में आत्मसात ।

दिल की पनाहों में महफ़ूज़ सुरमई वो शाम 
यादों की तिजोरी खोलूं हो बेमौसम बरसात 
घड़ी भर लिए खुश्बू  हुई जो जज़्ब सांसों में
वह एहसास संजो रखे हैं अबतक ख़यालात ।

यादों में,ख़्वाबों  में कभी आ बैठें पलकों पर
जुगनुओं सा जगमगा कर जाते हैं ख़ुराफ़ात 
दिखा नया मंज़र फिर मेरी भोली आँखों को
मनाकर जश्न रातों में चले जाते मचा उत्पात ।

है याद अभी वो ठौर पी जहाँ नज़र का जाम
ख़्यालों में अवारा घूमता ठहरा हुआ लम्हात 
डर जाती खिड़की से गुजरता कोई अजनवी 
चुरा ले न मोती नैनों के वो दे नैनों की सौगात ।

कभी लरजे हँसी लब पे कभी आँखों में आँसू
कहे मतिभ्रष्ट मुझे जग या वाहियात गवारा है 
जब भी निहारूं चेहरा नहीं बर्दाश्त दर्पण को
अक़्स नजरों में तेरी जो मैंने साक्षात उतारा है ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
                   शैल सिंह

बुधवार, 17 नवंबर 2021

कुछ शायरी

                     कुछ शायरी


जब ग़म मुश्किल हो जाए सीने में ज़ज़्ब करना
भींगो लेना अश्कों की कलम से पन्नों का सीना
ये सिसकियां भी इक दिन बन जाएंगी फसाना
ग़म जाहिर कर जमाने को कभी मौका ना देना,
दर्द हर्फ़ों के लिबास में जब्त पन्नों पर कर लेना
नींद की आगोश में करवटें बेफिक्र हो भर लेना । 


कभी ख़ुशग़वार हो बहारें गुजरती थीं बगल से
आज अहदे-खिजां दे गुजर गईं यूँ सर्र से बगल से
मासूम यादें खूब रोईं लिपट कर ख़्यालों की गुदड़ी से  
जैसे लड़खड़ा कर बिखर जाते मायूस हो पत्ते दरख़्त से
वैसे तो बहुत सारे दस्तावेज पास तन्हाई बहलाने के मग़र
यादें ज़ेहन के दीवारों दर खड़ीं खण्डहर सी माज़ी की मग़र। 


तेरी भेंट की हर चीज को जीने का संबल बना लिया है
रेशमी यादों का रेशा-रेशा,लपेट कर कंबल बना लिया है
आँखों में तेरी तस्वीर बसा ज़िन्दगी को संदल बना लिया है
तेरे ख़्यालों में सुलगते रहना ज़िन्दगी को जंगल बना लिया है
जख़्म,वफ़ा,बेवफ़ाई शुमार कर जीस्त को दंगल बना लिया है
गुजरे लम्हों की परछाईयाँ,लिखे ख़तों को भूमंडल बना लिया है। 

मेरे शब्दों को ग़ज़लों की,इबारत भर मत समझ लेना 
मेरे रूह की भींगी अल्फ़ाज़ों,की झनकार हैं ये ग़ज़लें 
ज़िन्दगी जिन हर्फ़ों के सुर,सप्तक लब पे न सजा पाई 
उसे पन्नों पे लिखे ताकि रूह को झकझोर दें ये ग़ज़लें।

कितना करूँ ऐतबार ये इन्तज़ारी मार डालेगी
दिल का छीन गया क़रार बेक़रारी मार डालेगी
नज़र से नज़र मिली बस ज़रा सी क्या सफर मेें
के इश्क़ में हुए ये कारोबार बेज़ारी मार डालेगी ।

बड़ी ताब लेकर निकलता है सूरज
गोधूलि में मायूस होकर मग़र डूबता है
गुमां क़ामयाबी का अच्छा नहीं होता दोस्त
शीशे के मानिंद गरूर इक दिन मग़र टूटता है ,
                                           

लोगों के लहज़े,अंदाज़ बता दिया करते हैं दिल में छुपे राज
चाहे जितनी मशक्क़त करले चेहरा,जुबाँ भाव छुपा लेने की।
               

ऐसी आड़ी तिरछी मुश्किलातें जिंदगी में,मेहनत रंग नहीं लाती
भगवन इतनी अच्छी नींद दे देना कि सपने देख मगन तो हो लूँ ।
                              
ईश्वर ने मुकद्दर तो बहुत उम्दा,अच्छा लिखा था 
मग़र बदइंसानों ने कीं हर बार साथ नाइंसाफियाँ ।
                                    
हम इतने बेख़याल हो गए कि गर्द चढ़ गई रिश्तों पर
जब पुराने रौ में लौटी तो लोग पहचानने से मुकर गए।

पंख उड़ानों को लगाती भी तो भला कैसे
हौसले औरों के आधीन औ पाबन्द जो थे। 


बसाया था जिन आँखों में मुझे आँखों की पुतली बनाकर
उन्ही आँखों में किसी ने डाल लिया है डेरा बसेरा बनाकर ,

धैर्य का दामन थामे मुश्क़िलाते आसां कीजिये
ज़िन्दगी है एक इम्तिहान,इम्तिहान देते जाईये ,

ऐ चाँद उतर आना चुपके से   
इक रात मेरे भी दरीचे में 
ख़ाहिशों के जुगनू जगमगा कर
छुप जाना बादल के कूचे में ,
                                        
कुछ अहसासों के ख़ुश्बू पास कुछ यादों के जुग़नू पास 
कुछ बचपन के गुजरे लम्हों की ,भूली बिसरी यादें साथ 
जीवन के इस विस्तार में बस,कुछ यादों का है बसा संसार
जब-जब पूरवा बहे अतीत की तब-तब यादों की पड़े फुहार 
पलकों का आँगन नम कर जातीं कितने शक़्लों की परछाई
विचरित करने लगतीं जेहन में,जब बाँहों में भर-भर तन्हाई ।   



गजल -- हर लम्हा गुजारा जैसे तेरे एहसास में

हर लम्हा गुजारा जैसे तेरे एहसास में 

दुधिया  आँचल  फैलाए  जवां रात है
रेशमी स्मृतियों की निर्झर बरसात है
खोल घूंघट घटा की चाँदनी चुलबुली
सजाई टिमटिम सितारों की बारात है ।

ख़ाब रूपहला सजाए  हुए पलकें मूंद
सपनों की आकाशगंगा में तिरती रही
गदराई चाँदनी छिटक कर अंगना मेरे
मृदुल स्पन्दन सुप्त प्राणों में भरती रही ।

मद्धिम हो जायेगी चाँदनी की उजास
आलम ये खो जायेगा भोर की गर्द में
रंग बिखर जायेगा हुस्न और ईश्क़ का
कब तक सूरत संवारती रहूँ आइने में ।

तेरे सहन में भी हो ऐसी दिलकश रात
मची हलचल  ख़यालों की  बस्ती में हो
हर लमहा गुजारा जैसे तेरे इन्तज़ार में
तेरी भी यामा  जग आँखों में कटती हो  ।

लफ्ज़ गूंगा तराशूं किन उपकरणों से
कि बयां कर सकें बेचैनियां ऐ बेवफ़ा 
बड़े ही तहज़ीब से यादें पहलू में बैठ
दर्द देतीं ज़ख़्म-ए-ज़िगर को बेइंतहा ।

उर में कोलाहल सन्नाटा फैली फ़िज़ा
खुशी कुहराम मचा बैठी हड़ताल पर
बेसबब इन्तज़ार का शामियाना लगा
रचातीं अश्रुओं से हैं स्वयंवर रात भर ।

आखिर कबतक नज़रबंद दिल में रहें
रतनारी आँखों में घटा बनी घिरतीं रहें।
छुपाये रखा जिसे दश्त की निग़ाहों से
शोर बरपा गयीं उमड़ बरसी आँखों से ।

सर्वाधिकार सुरक्षित
                   शैल सिंह