मंगलवार, 16 मई 2017

कविता '' हो रहे पृथक मैं-मैं से सभी ''

              कविता
'' हो रहे पृथक मैं-मैं से सभी ''


इक दिन पास उसी के जाना सबको
जो तीनों लोकों का स्वामी है
भले-बुरे कर्मों का लेखा-जोखा
रखता ऊपर वाला अन्तर्यामी है ,

मत तेरा-मेरा कहा करो जी
सब यहीं धरा रहा जायेगा
माटी का तन माटी में मिल
इक दिन ब्रह्मलीन हो जायेगा ,

ऐसे तत्वों का बस संग्रह करना
जिससे सुख आनन्द मिले भरपूर
तेरी हँसी दवा बन जाये रुग्ण की
जो निःशुल्क मगर बहुमूल्य है गुर ,

बुद्धि की सम्पत्ति बाँट सभी में
संग धैर्य का रखना हथियार सदा
रक्षा कर विश्वास,उपकार की रखना
रिश्तों में प्रीत की घोल सम्पदा ,

ऐसी मुस्कान बिखेरो मुखारबिन्दु
कि,पराये भी शामिल होके हँसे
आँसू तो आँखों के होकर भी
बहते ही पराया हो विहँसे ,

हो रहे पृथक मैं-मैं से सभी
चलो हम-हम का रिस्ता जोड़ें
इंसानियत,मानवता सबपे भारी
दम्भ हैसियत का सस्ता छोड़ें ,

श्रद्धा,ज्ञान,दया,सम्मान,नम्रता
जीवन तन के शृंगार आभूषण हैं
प्रार्थना,विश्वास अदृश्य भले पर
कर देते असम्भव को भी धूसर हैं ,

वसीयत,भोग-विलास,विरासत
मे, ना भूलें कर्मों की प्रधानता
परमपिता रखता हिसाब-किताब
जिनके कर्मों में होती महानता |

गुर---गुण

                   शैल सिंह

रविवार, 14 मई 2017

हिंदी ग़ज़ल '' इस कदर चुप ना तनहा रहा कीजिये ''

हिंदी ग़ज़ल  '' इस कदर चुप ना तनहा रहा कीजिये ''

आजकल लोग हँसने में भी कंजूसी करते हैं ,मनहूस जैसी शक्ल बनाये सामने वाले को भी मनहूस कर देते हैं ,उसी विषय पर सरल भाषा में मेरी ये एक हिन्दी गजल की कोशिश पेश है |



हँसी सांसों में घोल सरगम की तरह
हँसाईए औरों को खुद हँसा कीजिये ,

उदासियों में हँसी की वजह ढूँढकर
खुशनुमा ज़िन्दगी फिर बना लीजिए
कर कमबख्त ख़ामोशियों को दफ़ा
खूब असल ज़िंदगी का मजा लीजिए ,

ग़र्दिशे दर्द जख़्म हों हँसी पर फ़िदा
बिछा चौसर हँसी का जिया कीजिए
कितनी सस्ती हँसी हँसते-हँसते हुए
इसमें डुबकी लगा कर नहा लीजिए ,

हँसी चारों तरफ़ अपने बिखरी पड़ी
सब से संवाद कर बस उठा लीजिए
कितनी कीमती हँसी तत्व है जान लें
इसको बेहतर बनाकर हँसा कीजिए ,

सुप्तावस्था में हैं क्यूँ हँसी के सामान
उसको स्फूर्त कर फिर जगा लीजिए
खोल के होंठ के चुप्पियों की सांकल
ऐसा दिल-गुदाज मन्जर बना लीजिए ,

कभी दौड़ती भागती ज़िन्दगी से इतर  
खुद की परवाह भी तो किया कीजिए
कितनी नीरस लगे बिन हँसी ज़िन्दगी
इस कदर चुप ना तनहा रहा कीजिये ,

खिले होंठों पे शतदल कमल सी हँसी
गुलाब की पाँखुरी सी महका कीजिए
हँसी ज़ख्मे-ज़िगर की दवा मुस्तक़िल
बनाके शरबत हँसी को पीया कीजिए ,

इक दिन महरूम हो जाएगी ज़िन्दगी
क्या पता था कभी इक तबस्सुम लिए
वॉट्सऐप,फेसबुक,चैटों,की गतिविधि
पर होगी कुर्बान हँसी भी सदा के लिए ,

फिर से जीवन्त बना ज़िन्दगी साथियों
हँसी का झरना भी निर्झर बहा दीजिए
बिडम्बनायें कोई या विसंगति हो कोई 
हास्य सब में छिपा बस परखा कीजिए |

दिल-गुदाज ---गुदगुदाने वाला

                            शैल सिंह



मंगलवार, 2 मई 2017

ग़ज़ल '' शमां खुद्दारियों की बुझने न देना ''

      ग़ज़ल 


यूँ तो मुक़द्दर से शिक़वा बहुत
ज़िन्दगी तूं हमेशा महकती रहे
तेरे बिंदास मिज़ाज पर जिंदगी
ग़मे मौसम इरादा बदलती रहे।

ठोकरों से मिली नसीहत बहुत
रख अधर आबोताब हँसती रहे
थक जाएँगी बुरी नीयतें जिन्दगी
ठोकरें खुद तबियत बदलती रहें।

हर लमहा रखना गुमां का जेहन
दर आने को रौशनी मचलती रहे
शमां खुद्दारियों की बुझने न देना 
खुद दस्ते-सितम हाथ मलती रहे |

दस्ते-सितम --सताने वाला हाथ

                             शैल सिंह