सोमवार, 6 नवंबर 2017

" वजह दिलक़श शह से तेरा मुझे बेज़ार कर देना "

  

संदली सी महकती गुजरे पहलू से,मतवाला कर
मदिरालय में निग़ाहों के निमंत्रण से दीवाना कर ,

तेरी आँखों के सागर में भी देखा इश्क़ की लहरें
सफ़ीने सा उतराऊँ मैं भी उसी लहरों में ही गहरे
आशिक़ाना मिज़ाज देखे इन उफनाती लहरों के 
चल मिलें साहिलों पर तोड़ ज़माने के सभी पहरे ,

गर अल्फाज़ मुकर जाएं हृदय का हाल बताने से
झुका पलकें बता देना अन्तर का राज निग़ाहों से
अन्तर की नदी का कल-कल नाद दिल सुन लेगा
हटा घूँघट हया की चाँद निकल आना घटाओं से ,

बसा गेसुओं के झुरमट में दिल आबाद कर देना
नज़राना आरजू को मेरी दिल में उतार कर देना
गुम मदहोश अदायें कीं आजकल नींद रातों की
वजह दिलक़श शह से तेरा मुझे बेज़ार कर देना ,

हमदर्द बनकर नब्ज मुक़म्मल टटोल लिये होतीं
मौन हसरतों,अहसासों का कुछ मोल दिये होतीं
छोड़ निकम्में लफ़्जों को बंदिशें तोड़ संशयों की
दिल बोझिल न यूँ रहता फ़ख्र से बोल दिये होतीं ।

                                             शैल सिंह