मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

'' ग़ज़ल '' '' लौटा सको अगर तो लौटा दो वो हसीं वक्त मेरा ''

लौटा सको अगर तो लौटा दो वो हसीं वक़्त मेरा 

तरस जायेंगे बन्द दरवाजे तेरे
कभी दर पे आ तेरे दस्तक ना दूँगी
मेरे अहसानों का मोल चुकायेगा क्या तूं
कभी अब अपने तजुर्बों को ना शिक़स्त दूँगी
लौटा सको अगर तो लौटा दो वो हसीं वक्त मेरा
जो लूट गया नाजायज़ वो किसी को हर्गिज़ न दूंगी।

देर ना लगी है फितरत बदलते
इल्म था ये मगर वफ़ादारी निभाई
खाई है चोट दिल पर सिला ये मिला है
ज़ख़्म होता वदन पे देता दहर को दिखाई
वक़्त का करिश्मा भी बदलेगा करवट देखना 
क्या किसी को दूँ इल्ज़ाम जब नादां ख़ुद ठग आई।

ख़ामोशियाँ मेरी मुझे कोसती हैं
दर्द की ये इन्तेहा बयां कर सकूँ ना
छींटे किरदार पर न कत्तई बर्दाश्त होंगे
संग हवाओं के भी चलने का हुनर ला सकूँ ना
क्यूँ शख़्सियत नीलाम मेरी फ़रेबों के बाज़ार में
के नफ़रत बेवफ़ाओं से भी मुकम्मल कर सकूँ ना। 

                                             शैल सिंह 

शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

'' गजल '' ऐसा मय पिला गईं दो आँखें चलते-चलते,

              '' गजल ''


शेर..'' गजल '' ऐसा मय पिला गईं दो आँखें चलते-चलते,


हर्फ़ उल्फ़त के पढ़ लेना ग़ौर से
लफ्जों की पोशाक पेन्ही हैं ऑंखें
अल्फ़ाज़ भले ही मौन रहते हों
दिल की आवाज़ होती हैं आँखें ।

अफ़साने दिल के सुना देते आँखों-आँखों
जुबां कंपकंपा गयी जो बात कहते-कहते,

बज़्म में बेसाख़्ता मिलीं जो निग़ाहें हमारी
कुछ तो बुदबुदा गईं पलकें झुकते-झुकते,

सूनी नाद हमने इक दूजे के धड़कनों की
क्यूँ जाने लड़खड़ा गए क़दम बढ़ते-बढ़ते,

मस्ती छाई सांसों में मुस्कराये है ज़िन्दगी
ऐसा मय पिला गईं दो आँखें चलते-चलते,

सजा रखी रात-दिन ख्यालों की महफ़िल
दबे पांव आता है कोई रोज महके-महके,

फ़्रेम में नयन के मढ़ा कर तस्वीर उनकी
लुत्फ़ खूब उठा रहा हूँ ख़्वाब बुनते-बुनते,

उकेरुं रेखाचित्र रोज दिल के कैनवास पे
क्या-क्या सोचूँ तूलिका से रंग भरते-भरते,

ज़माने का डर होता न चाहत के दरमियाँ
खोल के किताब रखता दिल हँसते-हँसते ।
                                   शैल सिंह