लौटा सको अगर तो लौटा दो वो हसीं वक़्त मेरा
तरस जायेंगे बन्द दरवाजे तेरेकभी दर पे आ तेरे दस्तक ना दूँगी
मेरे अहसानों का मोल चुकायेगा क्या तूं
कभी अब अपने तजुर्बों को ना शिक़स्त दूँगी
लौटा सको अगर तो लौटा दो वो हसीं वक्त मेरा
जो लूट गया नाजायज़ वो किसी को हर्गिज़ न दूंगी।
देर ना लगी है फितरत बदलते
इल्म था ये मगर वफ़ादारी निभाई
जो लूट गया नाजायज़ वो किसी को हर्गिज़ न दूंगी।
देर ना लगी है फितरत बदलते
इल्म था ये मगर वफ़ादारी निभाई
खाई है चोट दिल पर सिला ये मिला है
ज़ख़्म होता वदन पे देता दहर को दिखाई
ज़ख़्म होता वदन पे देता दहर को दिखाई
वक़्त का करिश्मा भी बदलेगा करवट देखना
क्या किसी को दूँ इल्ज़ाम जब नादां ख़ुद ठग आई।
ख़ामोशियाँ मेरी मुझे कोसती हैं
दर्द की ये इन्तेहा बयां कर सकूँ ना
छींटे किरदार पर न कत्तई बर्दाश्त होंगे
संग हवाओं के भी चलने का हुनर ला सकूँ ना
क्यूँ शख़्सियत नीलाम मेरी फ़रेबों के बाज़ार में
के नफ़रत बेवफ़ाओं से भी मुकम्मल कर सकूँ ना।
शैल सिंह