रविवार, 24 सितंबर 2017

ग़ज़ल '' जब इश्क़ ने ले ली अँगड़ाई ''

        ग़ज़ल  

  '' जब इश्क़ ने ले ली अँगड़ाई ''


अधरों की नाजुक फाँकों पे
तबस्सुम क्यों खिलाई आपने
बिन सोचे शरारत कर बैठा
नजाकत क्यों दिखाई आपने ,

दो चंचल नैनों की फिरकी में
उलझाकर रोगी बना दिया
मचलने लगे जब ख़ाब मखमली 
शिकायत क्यों लगाई आपने ,

आपकी सारी कारगुज़ारी
अहमक़ हम बदनाम हुए
हसीं नाजो-अदा से पागल कर
क़यामत क्यों बरपाई आपने ,

दिल में क़ैद किया मालूम नहीं
हम रूह में शामिल कर बैठे
गेसुओं की ओट से झलक दिखा
सियासत क्यों कराई आपने ,

क़ातिल रवैयों को अल्फाज़ बना
क्या खूब रिझाया मासूम को
जब इश्क़ ने ले ली अँगड़ाई
शराफ़त क्यों दिखाई आपने ,

अन्दाज़ परख़ ख़ामोशी का
गुस्ताख़ी हुई पहलू तक की  
इश्क में जोगी बना दिया फिर
ज़लालत क्यों कराई आपने,

जब खबर हो गई दुनिया को
कतरा कर भीड़ से चले गये
रुख भोलेपन का डाल लबादा 
हजामत क्यों कराई आपने ।

                       शैल सिंह