सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

'' क्षणिकाएँ ''


          क्षणिकाएँ 

१--
इक वो लोग हैं कि परदेश जाकर सबको भूला देते हैं 
और उनके वालिद कहते फिरते बेटा मनिआर्डर भेजता है ,
२-
झूठे ही खोला झरोख़ा था शीतल हवा के लिए
देखा जो बाहर का मंज़र तो रूह कंपकंपाने लगी ,
३-
मुझे देख अकेले राह पर क्यों पूछते हैं सभी रस्ते
बता के हमसफर संग कैसे आजकल हैं तेरे रिश्ते ,
४-
हसरत है मेरे देश के बच्चे अंग्रेजी अच्छी जानें
पर डर है कहीं वो हिंदी के वर्ण ना भूल जाएँ ,
५-
आपके होने ना होने का कोई फ़र्क़ नहीं दिखता
अपने होने का कभी एहसास तो करा दिया होता ,
६-
रौशन है अँधेरा कमरे का 
ग़म तेरा तन्हाई साथ जो है 
आँसू की तलब आँखों को नहीं 
रंज जुदाई का ख़ास जो है
इक तोहफ़ा साथ उमर भर का
रिश्ता बेवफ़ाई का हाथ जो है ,
७-
हम सफ़र संग साथ निभाती चली गई 
काँटों की चुभन ज़ज्ब किये तलवों में 
कभी ऊफ़ तक भी लब पर लाई  नहीं
सूरत पे भाव ना लाई कभी शिकवों में  ,
८-
बहते ही जा रहे वक़्त और किस्मत के सैलाब में
सपनों की रेत पर बनाये हुए ख़ाहिशों के घरौंदे मेरे
रब जाने कब नसीब होगी बंजर के सूखे शज़र को बहार
धराशाई होते जा रहे आकाश तक उड़कर मन के परिन्दे मेरे ,

                                                             शैल सिंह


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